साहित्य-संचेतना-व्यंग्य - यातायात महोत्सव - राजकुमार बुन्देला मुरैना (मध्य प्रदेश)- 'नेपथ्य'सामाजिक परिवर्तन का तुमुलनाद, सितम्बर 2019

साहित्य-संचेतना-व्यंग्य


यातायात महोत्सवराजकुमार बुन्देला मुरैना                                                                                                     (मध्य प्रदेश)


पिछले कुछ दिनों से यातायात महोत्सव की टी.आर. पी. (हालांकि टी.आर.पी. का सही सही अर्थ मुझे पता नहीं है) सबसे अधिक है। फिर मुझे एक संशोधन सूझा है- जब टेलीविजन से ज्यादा कवरेज मोबाइल पर है, तो इसे टी.आर. पी. की बजाय एम.आर.पी. कहना ज्यादा ठीक होगा। अब चूंकि यातायात सड़क पर ही होता है तो महोत्सव के नजारे सड़क पर भी हैं, मोबाइल पर भी हैं। महोत्सव में यातायात पुलिस और न्यायाधीश कानून व्यवस्था की सभी प्राथमिकताओं को छोड़ चौराहों पर न्यायरत है। जुर्माने के आंकड़े महोत्सव की सफलता के कीर्तिमान तोड़ेंगे, यह एक अटल विश्वास सबके मन में है।


शासन की, विभागीय अमले की और भयाक्रांत कर ईमानदार बनाने की विधि के पक्षधर विद्वानों की प्रसन्नता छुपाए नहीं छुप रही है। एक भोले वक्तव्य पर तो बार बार मर जाने का मन होता है कि वह बेहताशा बढ़ोतरी न तो शासन की आय बढ़ाने के लिए हैं और न ही किसी और की। यह तो लोगों को ईमानदार और न्यायप्रिय बनाने के लिए है-तुलसी बाबा ने कहा है, बल्कि वे भी स्वयं इसका उत्तरदायित्व न लेकर राम के मुख से कहलवाते हैं कि भय ही प्रीति का जन्मदाता है। अभी तक अनेक बार जुर्माने की रकम बढ़ी, पर क्या करें, बढ़ी हुई रकम की कीमत भी बड़ी तेजी से कम होती जाती है। विवशतः भारत सरकार ने दुगने तिगुने के ऊँट-जीरा अनुपात को तिलांजलि देकर जर्माने की ऐसी आकर्षक दरें निर्धारित की हैंजिन्हें देखकरतो सांसें रुकने लगे।


यह एक पक्ष है। दूसरा पक्ष वो है जो अधिकांशतः टूव्हीलर्स और फिर थ्री-फोर व्हीलर लेकर सड़क पर निकलता है। यह बेईमान विकास विरोधी, हर सही कार्य का विरोधी जैसे तमाम विशेषणों को झेलकर भी सोशल मीडिया पर मुखर है और कहीं कहीं सड़क पर भी।


महोत्सव के दो मुख्य आकर्षण हैं- हेलमेट और सीट बेल्ट। यह लगभग प्रत्येक वाहन मालिक के पास उपलब्ध होता है, पर सबसे अधिक जुर्माना इन्हीं दो मदों से आता है। लोग एक काल्पनिक दुर्घटना जिसमें उनकी जान जा सकती मुरैना (मध्य प्रदेश) है से डरकर भी हेलमेट नहीं लगाते, सरकार सोचती है कि जुर्माना दस गुना कर दो तो उससे डरकर हेलमेट/सीट बेल्ट लगाएंगे। मैं चकित हूं कि जो जान देने के लिए तैयार है वो पांच हजार से डरेगा?


लेकिन वातावरण बनाना तो आवश्यक है, इसकी विधि जो भी हो। मैं भोपाल में था तो हेलमेट लगाकर ही चलता था। ग्वालियर में भी अपने चौराहे को छोडकर, कहीं और जाता था तो हेलमेट लगाता था। जान बचाने के लिए नहीं, क्योंकि मेरी स्पीड लिमिट 40 है और शहर में तो 15-20 ही है। मैं हेलमेट लगाता था, जुर्माने से बचने के लिए क्योंकि मैं (या कोई भी) फालतू में 100 रुपये भी फेंकना नहीं चाहता। मुझे यह तर्क बहुत हास्यास्पद लगता है कि जुर्माना कम हो तो आदमी बेईमान होता है, और जुर्माना अधिक हो तो देशभक्त ईमानदार हो जाता है। एक और तर्क मुझे हंसने पर विवश करता है- “कि आप नियंत्रण में है तो यह काफी नहीं है, क्योंकि सामने वाली गाड़ी आपको ठोक देगी तो आपका सिर तो फूट ही जाएगा, इसलिए हेलमेट जरुरी है।' बंधुवर इस तर्क के अनुसार तो सड़क पर चलने वाले पैदलों को सबसे पहले हेलमेट चाहिए।


अब मैं मुरैना में हूं तो आप जुर्माने की राशि कितनी भी बढ़ा दो कोई नहीं लगाता, कोई नहीं पूछता, मैं भी नहीं लगाता। पर कभी लगा भी लेता हूं। वातावरण बनेगा तो यहां भी कभी सब लगाने लगेंगे।


असल में कहानी यह है कि यातायात महोत्सव की रौनक पिछले कुछ सालों से कम हुई थी। यातायात थाने, चौकियां, चौराहे इन सब का जो ऐतिहासिक महत्व रहा है, उस गौरवशाली परंपरा की पुनस्थापना का यह पवित्र प्रयास है। मध्यप्रदेश की सरकार इसका विरोध कर रही है पर मध्यप्रदेश के ही यातायात अमले ने महोत्सव मनाना चालू कर दिया है। यह एक किस्म का सांकेतिक सकारात्मक विरोध है जिसमें विरोध की पावन परंपरा भी निर्वहन हो जाती है, और न्याय भी निरंतर रहता है। धारा 370 के मामले में केन्द्रीय स्तर पर यही हुआ। तो, महोत्सव ने हर तरफ उमंग उत्साह का संचार कर दिया है जिनके कपड़े उतरेंगे, वे भी एक अजीब नशे में होंगे। (नंगा, खुदा से बड़ा) कुछ दृश्य व्हाट्सएप पर दिखने भी लगे हैं। हेलमेट के धंधे में फिर चमक आ गई है। इससे कई बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा।


अंत में एक और, कि देश कश्मीर को भूल, चन्द्रयान, क्रिकेट, सिंधु, सोने चांदी की कीमतें, घोटाले और ऐसे अन्य सभी विषयों को भूल यातायात महोत्सव में शामिल है। कहां है मंदी।