सम्पादकीय 'नेपथ्य' नवम्बर 2019

सम्पादकीय .


इस बार आरंभ स्वयं से कर रहा हूं। विगत माह अक्टूबर की 15 तारीख को शिर्डी में था। यह लगातार 14वां वर्ष था जब मैं शिर्डी में था, वो भी 15 अक्टूबर की तारीख को, निर्धारित (बीच में किसी एक वर्ष किसी चुनाव कार्य के कारण 15 अक्टूबर को नहीं जा सका था तो अगले ही माह नवम्बर की 9 तारीख को वहां था)। कारण, साई की पुण्यतिथि 15 अक्टूबर और इस नाचीज का जन्मदिन 15 अक्टूबर। अभूतपूर्व संयोग....। इस आध्यात्मिक रिश्ते-सिलसिले की शुरुआत बड़ी ही रोचक है। वर्ष 2006 में मैं बालाघाट में था, शिर्डी के सांई बाबा का नाम तो सुना था लेकिन कभी गया नहीं था। वहां लोगों ने कहा कि यहाँ से 40 किमी., गोंदिया से सीधी ट्रेन मिलती है कोपरगांव स्टेशन को। वहाँ उतरकर 16 किमी. शिर्डी, तमाम वाहन सुविधायें। तो अगस्त 2006 में हम पहली बार शिर्डी गये। वहां म्यजियम में घमते घमते उनकी पुण्यतिथि 15 अक्टूबर 1918 पर नजर गई तो ठिठक गया, अरे 15 अक्टूबर तो मेरी जन्मतिथि है, सोचा, इस साल 15 अक्टूबर को भी आऊंगा। सौभाग्य से उस वर्ष 2006 में दशहरा 12 अक्टूबर को था और उस अवसर पर एक रिश्तेदारी में अहमदाबाद जाना ही था, तो लौटते समय नासिक, शिर्डी होते हुए आने का कार्यक्रम भी आसानी से बन गया। तो उसी वर्ष 2006 में पहली बार हम 15 अक्टूबर को शिर्डी में थे। अब वहां देखा कि मंदिर खूब सजा हुआ है, झांकियां लगी हुर्ह है, मेला भी लगा है, तो वहां के एक बाशिन्दे से पूछा कि ऐसा उत्सव सा माहौल क्यों ?उसने बताया कि हिन्दी तिथि से सांई की पुण्यतिथि दशहरे के दिन की है, उस तिथि से एक माह तक यहाँ उत्सव मनाया जाता है। अब मेरे दोबारा चकित होने की बारी थी, क्योंकि मेरी जन्मतिथि भी हिन्दी तिथि के अनुसार दशहरा ही है। तब से मैंने सोचा कि यह युगल-संयोग है, तो हम हर वर्ष 15 अक्टूबर शिर्डी में ही रहेंगे। और यह सिलसिला तब से अब तक मुसल्सल (निरन्तर) जारी है। वर्ष 2017 से अपने जन्मदिन 15 अक्टूबर को शिर्डी में रक्तदान भी करता हूं, इस वर्ष लगातार तीसरे वर्ष यह किया। अभूतपूर्व संतुष्टि, खुशी मिलती है, इस प्रकार प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन मना कर। क्या पता मेरे जन्मदिन पर किया गया रक्तदान किसी का जीवन बचा रहा हो, इस अनजानी ही सही, खुशी का कोई मोल नहीं, जिस भी 'प्रेरणा' से मैं यह कर पा रहा हूं, नमन है। क्या ही अच्छा हो, हम अपने जन्मदिन और अन्यान्य ऐसे अवसरों पर सामाजिक धूलधाम, जलसे के दिखावे से हटकर गरीबों को खाना खिला कर, रक्तदान करके, किसी जरुरतमंद के लिये कुछ करके खुशियां महसूस करें। बहरहाल सभी के अपने विचार हैं, अपने ख्यालात हैं और उसके साथ रहने की स्वतंत्रता भी है। वैसे एक बात और है, शिर्डी से 'नेपथ्य' के भी जुड़ाव की। वर्ष 2012 जनवरी में जब पहली बार 'नेपथ्य' प्रकाशन में थी, उसी समय मेरे पिताजी-माताजी और मामाजी भारतदर्शन पर थे, उनकी ट्रेन भोपाल से होकर गुजरी और उन लोगों को उस यात्रा में शिर्डी भी जाना था। उनके भोपाल स्टेशन पर होने के समय तक 'नेपथ्य' के अंदर के 40 पृष्ठ (श्वेत-श्याम) ही तैयार हो सके थे। मुखपृष्ठ तैयार नहीं था तो मैंने वे ही 40 पृष्ठ उन लोगों को दे दिये और इस तरह 'नेपथ्य' के प्रथम अंक की पठन सामग्री के पृष्ठ शिर्डी में चढ़ाये गयेहालांकि उसके बाद से प्रत्येक अक्टूबर माह का अंक शिर्डी में सांई के चरणों में होता है, साई यह जुड़ाव आशीष बनाये रखें। तो इतने सब व्यक्तिगत विचारों घटनाओं का लब्बोलुबाब यानी मकसद-आशय इतना ही है कि आप सम्मानीय 'नेपथ्य' से जुड़े सभी स्नेहीजन,जिनकी श्रद्धा शिर्डी के सांई में है, जो जाना तो चाहते हैं लेकिन कतिपय कारणों से नहीं जा पाते है तो दिल छोटा न करें, आप 'नेपथ्य' से जुड़े हैं और आपकी 'नेपथ्य' प्रतिवर्ष बिना नागा, साई दरबार में न केवल अपनी उपस्थिति देती है, बल्कि उसकी एक प्रति वहां उनके चरणों के पास रखे 'बॉक्स' में रख दी जाती है। तो अप्रत्यक्ष ही सही आप सभी भी 'नेपथ्य' के माध्यम से वहां होते हैं और सांई के आशीष के पात्र बनते ही हैं। सच पूछिये, तो कोई भी श्रद्धा अगर सच्ची है तो हमारे भीतर कुछ सकारात्मक ही करती है, भीतर की शक्ति को देखने की दृष्टि देती है और यह धनात्मक परिवर्तन हमें जीवन की वास्तविक सफलताओं की ओर ले जाता है। शक्ति आत्मबल हममें ही है, इसीलिये कहा भी जाता है कि हर किसी में ईश्वर का वास होता है, लेकिन हमने उस सत्य से आंखें मूंद कर ढोल नगाड़ों और कर्मकांडों को ही श्रद्धा मान लिया है। ऐसी श्रद्धा किसी प्रकार की धनात्मक-सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती होगी, मुझे संदेह है और शायद यही कारण है कि देश में मंदिरों-मस्जिदों-गुरुद्वारों-देवालयों की संख्या भी बढ़ रही है, श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है, दुर्गा पूजा, गणेश पूजा आदि आदि के पंडालों की संख्या भी बढ़ रही है, उनका आयतन-अनुपात, स्तर भी बढ़ रहा है, लेकिन अपराध, द्वेष, ईर्ष्या, रंजिशें, व्यभिचार, बेईमानी, छल-कपट आदि आदि कम होने के बजाय बढ़ ही रहे हैं, क्या इस पर भी विचार किये जाने की आवश्यकता है ? अब बात कुछ देश-दुनिया की कर ली जाये। विगत दिनों कश्मीर में एक बार फिर मानवता शर्मसार हुई। एक आतंकी हमले में 6 गैर कश्मीरी, संभवतः बिहार-यूपी के मजदूर मारे गये। सभ्य समाज फिर स्तब्ध है। आखिर कश्मीर में ये आग कब बुझेगी। धारा 370 खत्म करने के बाद भी हालात में तब्दीली क्यों नहीं हो रही, क्यों यूरोपीय सांसदों को वहां की प्रायोजित यात्राएं करानी पड़ रही है, आखिर क्यों बर्फीली कश्मीर सुलग रहा है। क्या धारा 370 हटाने का फैसला कुछ सकारात्मक परिणाम देगा, जैसे कई अनगिनत सवाल है कश्मीर की वादियों में। इन सवालों के जवाब जल्द मिलें, कश्मीरी बाशिन्दों को भी सुकून भरे जीवन की सौगात मिले, बेकसूर लोगों की सांसें अनायास न थमें, तभी धारा 370 हटाने की सार्थकता होगी, वरना यह भी एक सियासी पैंतरे से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि सियासत अब काफी कुछ पैंतरेबाजी का ही खेल रह गयी है। नम्बरों का गेम यहां मध्यप्रदेश में हो गया, महाराष्ट्र में जारी है। यहां जैसे तैसे जादुई आंकड़ा छूने वाली सरकार की एक आंख नम्बरों पर ही रहती है कि कोई, खिसकने ना पाये, इसके लिये पर्दे के पीछे मेलिंग-ब्लेक-मेलिंग भी होती हो तो कोई क्या जाने.... बहरहाल कश्मीर की वादियों में शांति जितनी जल्दी बहाल हो, उतना ही अच्छा होगा। आप सभी को यह जानकर भी हर्ष होगा कि आपकी 'नेपथ्य' शनैः शनैः अपना आठवां वर्ष भी पूर्ण करने के कगार पर है। यह लम्बा सफर आप सभी के समन्वित सहयोग, सह-भावनाओं की अदृश्य डोर के ही कारण संभव हो सका है। आगे भी इस अदृश्य डोर की स्नेह ऊँगलियां अपनी 'नेपथ्य' की नन्ही हथेली में दिये रहिये, आपकी 'नेपथ्य' आपके दिलों तक यूँ ही पहुंचती रहेगी क्योंकि दिलों तक पहंचना 'डाक विभाग' का मोहताज नहीं होता। इस बार इतना ही, 'शेष-अशेष फिर....' "आपका ..तुमुल